दिशा सूचक यंत्र क्या है (Compass kya hai) कितने प्रकार के है

दिशा सूचक यंत्र क्या है आपने बड़ी बार इस यंत्र का नाम सुना होगा पर कभी आपने ने सोचा है। इसके पीछे का इतिहास क्या है, और कैसे इसका अविष्कार हुआ, ओर दिशा सूचक यंत्र कितने प्रकार के होते है, साथ ही यह किस धातु से बना होता है। 

इनसब की जनकारी हम आपके लिये इस आर्टिकल में लेकर आये है इसे पढ़ने के बाद आपको दिशा सूचक यंत्र से जुड़ी बहुत ही रोचक जानकारी मिलेगी साथ ही आप अलग अगल प्रकार के दिशा सूचक यंत्र की जनकारी मिलेगी। चलिये जानते है पहले दिशा सूचक यंत्र क्या है। दिशा सूचक यंत्र का आविष्कार 12 शताब्दी में हुआ ओर दिशा सूचक यंत्र की सुई हमेशा उत्तर दिशा दर्शाती है

दिशा सूचक यंत्र क्या है

दिशा सूचक यंत्र या Compass एक ऐसा यंत्र है जिसका उपयोग पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवो पर निर्भर रहकर ओर जिसमे लगी चुम्बकीय सुई नुमा तीर से दिशा का पता चलता है यह तीर हमेशा उत्तर दिशा की ओर संकेत करता है।

यह सुई किसी ऐसी धातु की बनी होती है जिसमे चुम्बकीय गुण हो। इसे अंग्रेजी में Compass के नाम से जाना जाता है, Compass लैटिन भाषा के Com मतलब सब साथ में ओर passes मतलब क्रिया करना होता है। दिशा सूचक यंत्र जोकि कंपास है उसका आविष्कार William Thomson, 1st Baron Kelvinin ने किया था।

विलियम थॉमसन से पहले भी दिशा सूचक यंत्र का उपयोग किया जा चुका है इसके बारे में हम इसके इतिहास में जानेंगे कि सबसे पहले कंपास किस देश में खोज गया, और किन के द्वारा इसकी खोज हुई। पर उससे पहले जानते है कि ये दिशा सूचक यंत्र कितने प्रकार के होते है। 

दिशा सूचक यंत्र का चित्र

दिशा सूचक यंत्र का इतिहास

यदि हम दिशा सूचक यंत्र के इतिहास की बात करे तो यह बहुत ही प्राचीन है, क्योकि लगभग 200 से 300 ईस्वी पूर्व में दिशा सूचक यंत्र का यूज़ देखा गया इसके प्रमाण 206 ईसवी में मिलता है, सबसे पहले इस दौर में चाइना के हान राजवंश में राजा के रथ पर ऐसी एक यंत्र होने कर प्रमाण है, ओर माना जाता है कि वह यंत्र दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता था। उस यंत्र में एक पत्थर जिसे LoadStone के नाम से जाना जाता है उसका यूज़ किया जाता था Loadstone एक उस वक़्त का एक चुम्बकीय पत्थर हुआ करता था।

जिसपर बाकी धातु की चीज़ें खींचा करती थी, उसी दौर में कुछ बुद्धि जीवो ने मिलकर उस पत्थर से एक यंत्र बनाया जोकि एक निश्चत दिशा की ओर संकेत करता था, उसी से दिशा सूचक यंत्र प्रचलन में आया, वैसे इसका अलसी यूज़ सन 1300 में अंग्रेजो ओर इस्लामिक देशों के द्वारा किया जाने लगा।

इसके बाद इसका इस्तेमाल बढ़ता गया और धीरे धीरे प्रथम विश्व युद्ध और सोवियत आर्मी के हाथों में पहनी जाने वाली घड़िया समय के स्थान पर दिशा बताने वाले यंत्र पहना करते थे। क्योकि जंग में उनके लिये सही दिशा की ओर बढ़ते रहना पड़ता था। 

दिशा सूचक यंत्र कितने प्रकार के है

दिशा सूचक यंत्र चार प्रकार के है, इन सबका विभाजन इनकी कार्य प्रणाली के अनुसार किया गया है, जैसे कि सबसे सामान्य है चुम्बकीय क्षेत्र वाला कंपास जोकि प्रचलन में है। पर आपको पता है बिना चुम्बकीय क्षेत्र वाले कंपास भी है जिनको किसी चुम्बक की जरूरत नही होती है जी हां ऐसे कंपास को गयरोस्कोपी कंपास कहते है। चलिये जानते है चारो प्रकार को अच्छे से। 

मैगनेटिक कंपास – Magnetic Compass 🧭 

मैगनेटिक कंपास में एक धातु की बनी सुई होती है जोकि कांसे से बने किसी गोलाकार डिब्बे में इस तरह से सेट की जाती है कि ऊपर सबसे कम घर्षण बल लगे और वह सुई एक तरह से ऐसा कहले की स्वतंत्र रहे, तब जाकर वह सुई उत्तर दिशा की ओर जाके इस्थिर होती है। परंतु उस सूई का भी चुम्बकीय होना आवश्यक है तब है वह उत्तर की ओर ठहरेंगी ओर एक बार कंपास में उत्तर दिशा का ज्ञान हो जाता है। तब बाकी दिशाओं का ज्ञान बड़ी आसानी से हो जाता है।

क्योकि दिक़सूचक या दिशासूचक यंत्र के ऊपर की ओर उत्तर दिशा नीचे दक्षिण दिशा बाए ओर पश्चिम दिशा और दाएं ओर पूर्व दिशा जैसा कि आप को फ़ोटो में दिखाया गया है ठीक वैसे ही अंकित होता है

● नॉन मैगनेटिक कंपास – Gyrocompass

जैसा कि आपने जाना मैगनेटिक कंपास के बारे में ओर आपने जितने भी कंपास देखें होंगे वो सब मैगनेटिक कंपास होंगे, पर आपकी जानकारी के लिये बतादे की जो सबसे विश्वसनीय ओर सबसे ज्यादा यूज़ किया जाने वाला कंपास है तो वह Gyrocompass है।

इसके पीछे की वजह बिल्कुल साफ है, कंपास समंदर ओर रेगिस्तान के बीच राहगीरों के लिये DOT का काम करता है Direction Of Trevel पर सोचिए ऐसी जगह जहा पर चुम्बकीय क्षेत्र की अधिकता है, या वह पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र काम नही करता ऐसी जगह आपके नार्मल वाले जो चुम्बकीय कंपास है वो काम नही करते है, उदाहरण के लिये जैसे मरियाना ट्रेंच जिसे बरमुडा ट्रेन्गेल के नाम भी जाना जाता है, वहा चुम्बकीय क्षेत्र काम नही करता। यही वजह रही कि पुराने समय में वह सबसे ज्यादा हादसे हुआ करते थे। पर अब gyrocompass की वजह से ऐसी दुर्घटनाओं से बचना बहुत आसान हो गया है।

इतना ही नही सबमरीन्स में चुम्बकीय या कोई और कंपास काम नही करता वहाँ gyrocompass ही काम आता है। और इसकी सटीकता भी बिल्कुल सही होती है। चाहे बड़े बड़े समुंदरी जहाजों की बात हो या वायु सेना के हवाई जहाज हो सबसे में gyrocompass यूज़ किया जाता है। 

ऐसा नही है कि मैगनेटिक कंपास इन सब जगहों पर यूज़ नही होते है, ये भी एक बैकअप के लिये रखे जाते है, पर जो प्राथमिक कंपास होता है वह gyrocompass होता है।

Gyrocompass एक गोलाकार पहिये नुमा आकृति को बिना किसी घर्षण के ओर बिना किसी गुरुत्वाकर्षण बल के ऐसे सेटअप किया जाता है। कि ऊपर बाहरी किसी बल का प्रभाव नही होता और वहां दिशा निर्देश आसानी कर देता है। gyrocompass हवा में लटके लट्टू के जैसे होता है। उसपर किसी घर्षण का प्रभाव नही होता।

● जीपीएस रिसीवर कंपास – GPS

यह एक तरह से आधुनिक कंपास मान सकते है, पर यह उतना सटीक नही होता जितना कि gyrocompass ओर megnatic compass होते है। जीपीएस कंपास में किसी भी दिशा की जानकारी के लिये उस डिवाइस की वर्तमान स्थिति और बाकी अन्य डिवाइस से उसकी तुलना करके दिशा के बारे में जानकारी दी जाती है, हालांकि ऐसा नही की डिसक इस्तेमाल नही किया जाना चाहिये पर हा इतना है कि विकट परिस्थितियों में जैसे किसी आपदा के आने पर विधुत की आपूर्ति नही हो। या आप किसी ऐसी जगह हो जहा जीपीएस की बैटरी खत्म हो और उसे चार्ज नही किया जा सके उन परिस्थितियों में जीपीएस रिसीवर की जगह gyrocompass ही सबसे बेहतर विकल्प है।

● मैग्नेटोमीटर – Magnetometer

यह कंपास या दिशा सूचक यंत्र सामान्य तय आपके मोबाइल डिवाइस में दिया जाता है। इसमे विधुत चुम्बकीय क्षेत्र की मदत से दिशा का पता लगाया जाता है। और यह एक सटीक कंपास होता है पर हर परिस्थिति में यह भी कारगर नही रहता है क्योकि इसमे आपके पास विधुत पर निर्भरता बनी रहती है। 

मॉडर्न जो भी कंपास बनाये जाते है वह चुम्बकीय कंपास होते है। जोकि एक रबर से बने साँचे में, एक कांच के अंदर लिक्विड जैसे कि, कैरोशीन, तेल, पानी आदि भर कर उसमे हवा के लिये कुछ स्थान रिक्त रखा जाता है और उस लिक्विड में मैगनेटिक सुई को अच्छे से सेटअप किया जाता है। 

जिससे कि सुई लिक्विड में आसानी से घूम सके यह दिशा सूचक काफी जगह यूज़ किया जाता है, पर इसे सेकंडरी रखा जाता है क्योकि जैसा कि पहले बताया gyrocompass को प्राथमिकता दी जाती है। 

दिक्सूचक का उपयोग कैसे किया जाता है उसके लिये आपको यह जाना जरूरी है कि सबसे ऊपर की ओर जो दिशा दी जाती है वह उत्तर दिशा होती है और नीचे की दक्षिण दिशा होती है। जब इन दिशाओ का आपको पता चल जाएगा तब आप बाकी दिशाओ का अंदाजा आसानी से लगा पाएंगे। दिशा सूचक यंत्र चार मुख्य ओर चार उनके भाग टोटल आठ दिशाओं की जानकारी देता है।

आज आपने जाना दिशा सूचक यंत्र से जुड़ी सभी जानकारी यदि आपको यह आर्टिकल इंफॉर्मेटिव लगा तो इसे शेयर करे। और आगे ऐसे ही आर्टिकल्स के लिये हमारे यूआरएल को बुकमार्क करे। 

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